Sunday, May 8, 2011

मातृ दिवस पर

मैं नहीं जानता
क्योंकि नहीं देखा है कभी 
पर जो भी
जहां भी लीपता होता है
गोबर के घर-आंगन

जो भी
जहां भी प्रतिदिन दुआरे बनाता होता है
आटे-कुमकुम से अल्पना

जो भी
जहां भी लोहे की कड़ाही में छौंकता होता है
मेथी की भाजी

जो भी
जहां भी चिंता भरी आंखें लिये निहारता होता है
दूर तक का पथ 
वही
हां, वही है मां।
-श्रीनरेश मेहता

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना!
    --
    मातृदिवस की शुभकामनाएँ!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार

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  3. माँ को प्रणाम!
    मातृदिवस पर बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
    --
    बहुत चाव से दूध पिलाती,
    बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
    सीधी सच्ची मेरी माता,
    सबसे अच्छी मेरी माता,
    ममता से वो मुझे बुलाती,
    करती सबसे न्यारी बातें।
    खुश होकर करती है अम्मा,
    मुझसे कितनी सारी बातें।।
    --
    http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html

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